Friday, November 23, 2007

चाटुचणकः

नासाथूत्कृतिमिश्रैः मिथ्याकासैः सकण्ठटङ्कारैः ।
पृष्टो विघ्नं कुरुते विस्मृतलट्प्रत्ययो विद्वान्
विद्वत्सभायां कदाचित् अन्येन पृष्टस्य प्रश्नस्य उत्तरं विस्मृत्यादिवशात् अजानन् विषयोपस्थापकः कष्टम् अनुभवति । विषयस्मरणार्थं बहुधा प्रयत्नं करोति सः । तथापि किमपि न स्मर्यते । तदा स्वस्य असहायकतां गोपयितुं सः नासां पौनःपुन्येन स्पृशन् थूत्कारशब्दं करोति , मिथ्याकासम् उत्पादयति । ध्वनिसमीकरणव्याजेन कण्ठशब्दं करोति । एवं बहुभिः शरीरव्यापारैः सः स्वस्य विस्मृतेः (अज्ञानस्य वा) प्रकाशनं निवारयितुं प्रयतते ।
एषा एव स्थितिः मौखिकपरीक्षासु , कक्षादिषु चापि दृष्टिगोचरतां याति ननु बहुधा ?
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3 comments:

Mukesh said...

very nice............

Raj said...

बहुत बढिया प्रयास किया जा रहा है । इसी तरह कनिष्ठ शोध छात्रवृत्ति मिल जाएगी । चित्र बदल दो ।

Satish Chandra Satyarthi said...

अगर साथ में लेख का हिन्दी अनुवाद भी दे दें तो आपकी बात अधिक लोगों तक पहुँच पाएगी और लोगों में संस्कृत के प्रति रूचि भी बढेगी

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