नासाथूत्कृतिमिश्रैः मिथ्याकासैः सकण्ठटङ्कारैः ।
पृष्टो विघ्नं कुरुते विस्मृतलट्प्रत्ययो विद्वान्
विद्वत्सभायां कदाचित् अन्येन पृष्टस्य प्रश्नस्य उत्तरं विस्मृत्यादिवशात् अजानन् विषयोपस्थापकः कष्टम् अनुभवति । विषयस्मरणार्थं बहुधा प्रयत्नं करोति सः । तथापि किमपि न स्मर्यते । तदा स्वस्य असहायकतां गोपयितुं सः नासां पौनःपुन्येन स्पृशन् थूत्कारशब्दं करोति , मिथ्याकासम् उत्पादयति । ध्वनिसमीकरणव्याजेन कण्ठशब्दं करोति । एवं बहुभिः शरीरव्यापारैः सः स्वस्य विस्मृतेः (अज्ञानस्य वा) प्रकाशनं निवारयितुं प्रयतते ।
एषा एव स्थितिः मौखिकपरीक्षासु , कक्षादिषु चापि दृष्टिगोचरतां याति ननु बहुधा ?
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Friday, November 23, 2007
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3 comments:
very nice............
बहुत बढिया प्रयास किया जा रहा है । इसी तरह कनिष्ठ शोध छात्रवृत्ति मिल जाएगी । चित्र बदल दो ।
अगर साथ में लेख का हिन्दी अनुवाद भी दे दें तो आपकी बात अधिक लोगों तक पहुँच पाएगी और लोगों में संस्कृत के प्रति रूचि भी बढेगी
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बस हो गया काम !!
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